भारत एक कृषि प्रधान देश है और भारत की 70 प्रतिशत आबादी कृषि व कृषि उत्पादों पर निर्भर करती है। परन्तु विगत कुछ दशकों से सरकार किसानों के प्रति गलत नीतियों के कारण किसानों की आर्थिक स्थिति बहुत दयनीय स्थिति में पहुंच गई है और कर्ज के बोझ से दबकर लगभग लाखों किसानों में आत्महत्या कर ली है। इसका मुख्य कारण आजादी के पश्चात किसानों के हित की लगातार अनदेखी की गई। यद्यपि प्रथम दो पंचवर्षीय योजनाओं में सिंचाई व अन्य सुविधाओं को विकसित करने के प्रयास किये गये परन्तु 60 के दशक तक खाद्यान्नों के मामले में हमे दूसरे देशों से खाद्यान्न के आयात पर निर्भर रहना पड़ता था। सन् 1966-67 में आस्ट्रेलिया से गेहूं आयात होता था वह लाल रंग का होता था। खाने में गोंद जैसा लचीला होता था उसको याद करके आज भी बहुत कष्ट होता है। उसके पश्चात देश में हरितक्रान्ति आयी जिससे Pusa Agricultural Research Institute ने उत्तम किस्म के बीजों और फर्टिलाइजर के उपयोग से हम खाद्यान्नों के उत्पादन मामले में आत्मनिर्भर हुए। उसके पश्चात आपरेशन फ्लड के माध्यम से हमने अपना दुग्ध उत्पादन को रिकार्ड स्तर पर पहुंचाया और आपरेशन ब्ल्यू के माध्यम से मत्स्य उत्पादन में रिकार्ड वृद्धि की। परन्तु 1990-91 में वैश्विकरण युग के प्रारम्भ होने के पश्चात और कांग्रेस सरकार की दोषपूर्ण कृषि नीति व किसान विरोधी फैसलों के कारण किसानों की आर्थिक स्थिति बदहाल होती चली गई।
आजादी के इतने समय के पश्चात भी देश में कृषि शिक्षा नीति नहीं बन पायी। देश में जितने भी कृषि विश्वविद्यालय हैं या कृषि शोध संस्थान है वे अपर्याप्त हैं। इसी कारण हरितक्रांति के पश्चात् कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं हुआ जबकि कृषि शिक्षा का व्यापक विस्तार व प्रसार ग्रामीण क्षेत्रों में होना चाहिए था किन्तु यह नहीं हो पाया। कृषि क्षेत्र में अन्तर्राष्ट्रीय स्पर्धा में बने रहने हेतु सरकार ने जी.एम.ओ. (Genetically Modified Organism) क्रॉप अपनाने से किसानों को अपने उत्पादों का मूल्य वास्तविक लागत से कम मिलने लगा और किसान ऋण के जाल में फसते चले गये। विश्व व्यापार संगठन की गलत नीतियों और विकसित देशों द्वारा अपने कपास उत्पादकों को बड़े पैमाने पर सब्सिडी दिये जाने के कारण विश्व बाजार में विदर्भ व आस पास के क्षेत्रों में पैदा कपास स्पर्धा से बाहर हो गई। किसानों द्वारा बड़े पैमाने पर आत्महत्या के मामलों में वृद्धि हुई, सदैव किसानों के हितों को नजरअंदाज किया गया। लगातार खाद्यान्न और तेल के आयात-निर्यात में किसान के हित विरोधी फैसले लिये गये।
(क) वर्ष 2007-08 में किसानों को उनके गेहूं की फसल का समर्थन मूल्य 8.50 रूपये प्रति किलो दिया गया परन्तु बाद में गेहूं को 14.82 रूपये प्रति किलोग्राम की दर से आयात किया फिर उसी वर्ष 10.01 रूपये प्रति किलो की दर से निर्यात किया गया।
(ख) वर्ष 2009-10 में केन्द्र में काँग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार थी और देश में आटा 20 रूपये प्रति किलो की दर से बिक रहा था परन्तु सरकार ने आटे का निर्यात 12.51 रूपये प्रति किलो की दर से किया।
(ग) इसी प्रकार देश में वर्ष 2006-07 के दौरान रिकार्ड उत्पादन लगभग 28.3 मिलियन मीट्रिक टन हुआ। ऐसी स्थिति में सरकार को चीनी का बफर स्टाक रखना चाहिए था परन्तु सरकार ने ऐसा करने के बजाय 12.50 रूपये प्रति किलो की दर से चीनी का निर्यात किया और बाद में 36 रूपये प्रति किलो के दर से चीनी आयात की गई।
पूर्ववर्ती सरकारों के समय में किसानों की पानी की समस्या, खाद की समस्या व उनके उत्पादों का उचित मूल्य न मिलना, आयात निर्यात की दोषपूर्ण नीति, ऋण का बढ़ता बोझ, बैंकों द्वारा जबरन वसूली आदि ऐसे कारण हैं जो किसानों की बदहाली हेतु जिम्मेदार हैं। पिछले 22 वर्षों में लगभग 3.30 लाख किसानों ने आत्महत्या की परन्तु कोई ऐसा समाधानपूरक सुझाव नहीं आ पाया जिससे इस बदतर स्थिति से किसानों को मुक्ति मिले और किसानों की समस्या का समुचित समाधान हो सके। मेरे विचार से किसानों को राहत प्रदान करने हेतु कुछ सुझाव विचारणीय हो सकते हैं -
- कृषि लागत कम करने हेतु परम्परागत खेती पर जोर देना।
- दोष रहित आयात निर्यात नीति का होना।
- विवादास्पद जेनेटिकली मॉडिफाइड फसलों पर अत्यधिक निर्भरता कम करना।ली>
- कृषि के प्रति आकर्षण पैदा करना व कृषि आधारित उद्योग धंधों को प्रोत्साहित करना।
- भूमि प्रबंधन व फसल प्रबंधन की एक राष्ट्रीय नीति होनी चाहिए।
- कृषि उत्पादों की भण्डारण व्यवस्था हो।
- किसानों के लिए ऋण उपलब्धता हो।
- किसानों के लिए उत्पादों की क्रय-विक्रय व्यवस्था हो।
वर्ष 2014 में केन्द्र में एनडीए सरकार के गठन के पश्चात् प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के निर्देशन में किसानों के कल्याण हेतु विभिन्न योजनायें चलायी गईं। सरकार ने कृषि क्षेत्र को प्राथमिकता देते हुए गत चार वर्षों में कृषि बजट में 1,64,415 करोड़ रूपये आबंटित किये गये जो कि यूपीए सरकार के वर्ष (2010-11 से 2013-14) के 1,04,337 करोड़ रूपये की तुलना में 57.58% अधिक है।
- वर्ष 2016-17 में देश में खाद्यान्न का रिकार्ड उत्पादन हुआ है।
- दूध के उत्पादन वर्ष 2011-14 तीन वर्ष में 398 मीलियन मीट्रिक टन के अनुपात में वर्ष 2014-17 में 465.5 मीलियन मीट्रिक टन है जो 16.9% अधिक है।
- मछली उत्पादन के क्षेत्र में वर्ष 2011-14 तीन वर्ष में 272.88 लाख टन की तुना में वर्ष 2014-17 में बढ़कर 327.74 लाख टन हो गया है जो 20.1% की वृद्धि है।
- अण्डा उत्पादन के क्षेत्र में वर्ष 2011-14 की 210.93 बिलियन की तुलना में वर्ष 2014-17 में 248.72 बिलियन हो गया जो 17.92% अधिक है।
- शहद उत्पादन के क्षेत्र में 2011-14 तीन वर्ष में 2,18,950 मि.टन की तुलना में वर्ष 2014-17 में 2,63,930 मि.टन हो गया जो 20.54% अधिक है।
- किसानों को आपदा से होने वाले नुकसान से बचाने हेतु प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना प्रारंभ की गयी है।
एनडीए सरकार के कार्यकाल में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की पहल पर जहां कृषि बजट में लगभग 50% की वृद्धि हुई। सरकार ने किसानों की कर्जमाफी में कई सकारात्मक कदम उठाये और किसानों को राहत देने के उद्देश्य से फसलों के समर्थन मूल्य में वृद्धि की गई।
खरीफ फसलें
फसल | 2013-14 | 2017-18 | वृद्धि |
धान | 1310 | 1550 | 18.32% |
ज्वार | 1500 | 1700 | 13.33% |
बजरा | 1250 | 1425 | 14.00% |
रागी | 1500 | 1900 | 20.67% |
अरहर | 4300 | 5450 | 26.74% |
मूंग | 4500 | 5575 | 23.89% |
उड़द | 4300 | 5400 | 25.58℅ |
सोयाबीन | 2560 | 3050 | 19.14% |
तिल | 4500 | 5300 | 17.78% |
रबी फसलें
फसल | 2013-14 | 2017-18 | वृद्धि |
गेहूं | 1400 | 1735 | 23.93% |
जों | 1100 | 1410 | 28.18% |
चना | 3100 | 4400 | 41.94% |
मसूर | 2950 | 4250 | 44.07% |
सरसों | 3050 | 4000 | 31.15% |
कुसुम | 3000 | 4100 | 30.67% |
अन्य फसलें
फसल | 2013-14 | 2017-18 | वृद्धि |
जूट | 2300 | 3500 | 52.17% |
गन्ना | 210 | 255 | 21.43% |
केन्द्र सरकार का वर्ष 2018-19 का वार्षिक बजट पास हो चुका है। किसानों को बढ़ते हुए ऋण के बोझ व अन्य समस्याओं से मुक्ति दिलाने के लिये केन्द्र सरकार ने वर्ष 2018-19 के वार्षिक बजट में कृषि बजट में अभूतपूर्व वृद्धि की है।
वर्ष 2018-19 में कृषि बजट
प्रक्षेत्र | बजटीय प्रावधान (करोड़ में) | प्रतिशत में वृद्धि | |
2017-18 | 2018-19 | ||
कृषि अनुसन्धान | 2166.46 | 2914.77 | 34.6% |
सिंचित क्षेत्र विकास | 223.00 | 234.00 | 4.93% |
डेयरी विकास | 2318.97 | 2788.28 | 20.24% |
नीली क्रांति | 553.23 | 747.45 | 35.11% |
फसल बीमा | 9000.75 | 13014.15 | 44.59% |
माइको इरिगेशन | 3400.00 | 4000.00 | 17.65% |
जैविक खेती | 450.00 | 520.00 | 15.5% |
कृषि यंत्रीकरण | 577.58 | 1200.00 | 107.76℅ |
ऑपरेशन ग्रीन (जिससे आलू,प्याज,टमाटर उत्पादों का अधिक मूल्य मिल सके) |
– | 500.00 | – |
वर्ष 2018-19 के बजट को किसानों और ग्रामीणों का हितैषी बजट माना गया। वित्त मंत्री श्री अरूण जेटली ने यह बताया कि किसानों की आमदनी वर्ष 2022 तक दोगुना करने की योजना है। किसान संगठन वर्षों से अपनी फसल का समर्थन मूल्य दो गुना करने की मांग कर रहे हैं और सरकार ने किसानों को उनके समर्थन मूल्य को लागत से डेढ़ गुना कर दिया है।
भारत जैसे कृषि प्रधान देश में जहां कृषि को सर्वोत्तम माना जाता रहा है। परन्तु भारत में कृषि को विकसित करने व आधुनिक सुविधा से युक्त बनाने हेतु यथोचित प्रयास नहीं किये गये। यहाँ तक की हम अपनी कृषि शिक्षा नीति नहीं बना सके। वैश्विकरण के युग के पश्चात आर्थिक रूप से तंग किसान आत्महत्या करने और कृषि के स्थान पर अन्य विकल्प की तलाश में मजबूर हो गया। वर्ष 2014 में एनडीए सरकार के गठन के पश्चात प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा किसानों के सशक्तीकरण हेतु विभिन्न कल्याणकारी योजनायें चलायी जा रही हैं कृषि पर आधारित उद्यमों को विकसित किया जा रहा है जिससे किसान सम्मान से अपना जीवन निर्वाह कर सके और गांव के युवकों को महानगरों की ओर पलायन न करना पड़े।